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लिखेगा कौन

रोशनी दीपक की हुई तो बुझेगा कौन, आशिक सूरज भी है वरना उगेगा कौन, पुछते हैं गज़ल नहीं की तुमने अब तक, रेख़्ता में जब तुम पढ़ोगे तो सुनेगा कौन, पहले अनदेखा फिर जरूरत में यार, करेले का बीज बोकर सोचना उगेगा कौन, सजदो से तो खुशियां आती थी दर पे, अब हर कोई पुष्पा है यार झुकेगा कौन, उरूज़ सीखकर बहर में लिखना ठीक है, मैं भी यही कर लूं तो खयाल लिखेगा कौन, बंदा शाम को देखता है सूरज को डूबकर, किनारे से तो ठीक था बीच में डुबेगा कौन