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"एक किस्सा ट्रेन और जिंदगी के सफर का"

किस्सा तब का है जब सारी दुनिया शहर को छोड़ गांव का रुख कर रही थी। पिताजी को घर से काम मिल चुका था और मेरे पढ़ाई की छुट्टी थी तो हमने गोदान की टिकट बुक करा रखी थी, जो की वेटिंग से आरऐसी में आ गई अब हमें कल निकालना था। मां और पापा को एक सीट मिली और मेरा सीट किसी अनजान व्यक्ति के साथ शेयर होने वाला था, मैं बड़ा उत्सुक था की गांव को जाना है हमने कुर्ला टर्मिनस से ट्रेन पकड़ा और आजमगढ़ के लिए रवाना हुए। फिर थाने रेलवे स्टेशन पर पहुंची जहां मेरे साथ जो सीट सांझा करने वाले थे वो चढ़ी एक औरत, जो की पसीने से लतपत और काफी जूना वस्त्र पहने हुए फिर उनके पीछे उसकी बेटी जिसके कपड़े तो मटमैले थे लेकिन वो काफी खूबसूरत थी उसकी आंखे भूंरी थी जो उसे और उम्दा बनाती थी। मेरे पिताजी ने उनके आते ही शोर करना चालू कर दिया आगे जाओ छुट्टा नहीं है ऐसा कहकर फिर वो औरत पास आई और बोली, भाई जी ये हमारा सीट है जो आरएसी में हुआ है मेरे पिताजी ने कहा टिकट दिखाओ उसने टिकट दिखाया लेकिन फिर पिताजी बोले एक सीट है और तुम दो लोग आए हो बिना टिकट सफर करवाना चाहती हो अपनी बेटी को। तो वो औरत बोली साहेब इसका टिकट बनवा लूंगी मैंने

कहानी मतलब वाले प्यार की

कहानी है आकाश और राधा की। दोनों नेशनल स्कूल में पढ़ते थे बस उनका डिवीजन अलग अलग था राधा डिविजन सी और आकाश डिवीजन बी में था और यहां डिवीजन मात्र बच्चो की संख्या ज्यादा होने से बना था कोई होनहार विद्यार्थी के आधार पे नहीं की डिवीजन ए में सभी होनहार छात्र हैं ऐसा कुछ नहीं था। अब आकाश राधा को पहली बार देखता है और बाकी दोस्त भी आकाश के साथ होते हैं तो भाग्य से आकाश और राधा दोनों ही गुजराती थे। और सारे दोस्त आकाश को बोलते हैं तेरे जाति वाली है अच्छी भी दिखती है बात कर और दोस्ती कर ले। लेकिन आकाश भी काफी एटीट्यूड वाला लड़का था और कभी सामने से किसी से बात नहीं करता था। हां राधा उसको मन ही मन अच्छी लगी लेकिन उसका मानना था की अच्छी दिखने वाली चीज हमेशा बुरी होती है भगवान उस बुराई को छुपाने के लिए सुंदरता देता है और उसने कभी राधा से फिर बात नहीं की। अब राधा काफ़ी होनहार लड़की थी और पढ़ाई, खेल में भी अव्वल आती थी तो प्रिंसिपल ने राधा को नया assignment दिया जहां सिर्फ होनहार बच्चों को लिया जाता। इस assignment में काफी देर भी होती थी क्योंकि काफी नया था वो। राधा अब उस assignment में काम करने लगी तो

train

Everyone was listening to the sound of the train at the railway station, and the track was calling me.

मोशमी

मैं कबूतर तो वो खिड़की है मोशमी चाहता हूँ मैं वो लड़की है मोशमी इस ज़माने से क्यों डरती है मोशमी अब ग़लत से निडर लड़ती है मोशमी हीरे जैसी वो अब चमकी है मोशमी ज़ुल्म अब तो नहीं सहती है मोशमी मैं क़दम जैसे तो धरती है मोशमी जैसे बारिश यहाँ पहली है मोशमी नूर तारों में भी भरती है मोशमी देखने में परी दिखती है मोशमी यार क्या अब कहूँ कैसी है मोशमी सोचा था जैसी बस वैसी है मोशमी साथ सौरभ के बस जँचती है मोशमी पर लगन में किसी बहकी है मोशमी इन दिनों जाल में उसकी है मोशमी लौट आ दिल की गर सुनती है मोशमी मत समझ इश्क़ जिस्मानी है मोशमी प्यार से बढ़ के तू पत्नी है मोशमी देर की तू ने अब गर्दी है मोशमी देख आयी मेरी अर्थी है मोशमी

#Escort service reality

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लिखेगा कौन

रोशनी दीपक की हुई तो बुझेगा कौन, आशिक सूरज भी है वरना उगेगा कौन, पुछते हैं गज़ल नहीं की तुमने अब तक, रेख़्ता में जब तुम पढ़ोगे तो सुनेगा कौन, पहले अनदेखा फिर जरूरत में यार, करेले का बीज बोकर सोचना उगेगा कौन, सजदो से तो खुशियां आती थी दर पे, अब हर कोई पुष्पा है यार झुकेगा कौन, उरूज़ सीखकर बहर में लिखना ठीक है, मैं भी यही कर लूं तो खयाल लिखेगा कौन, बंदा शाम को देखता है सूरज को डूबकर, किनारे से तो ठीक था बीच में डुबेगा कौन

नाग पंचमी क्यों मनाते है

"नागपंचमी क्यों मनाई जाती है विस्तार में" बात तब की है जब द्वापर युग समाप्ति की ओर था और राजा परीक्षित के शासन काल में कलयुग पैर पसार रहा था। तो राजा परीक्षित ने कलयुग को मारने का निश्चय किया लेकिन कलयुग काफी चतुर था और उसे पता था की राजा परीक्षित बहुत ही दयालु स्वभाव के है तो उसने विनती करके स्थान मांगा खुद के निवास के लिए , और राजा ने अपने दानी स्वभाव के कारण कलयुग को जुआ, मदिरा, परस्त्रीगमन, हिंसा और स्वर्ण में रहने की अनुमति दी, लेकिन राजा ने स्वयं स्वर्ण का मुकुट धारण किया था तो कलयुग ने राजा परीक्षित के मस्तक पर स्थान बना लिया और उनके व्यवहार को दुर्व्यहार और उन्हें काफी घमंडी बना दिया। इसी कलयुग के दुष्प्रभाव के कारण राजा परीक्षित ने देखा ऋषि शमिक ध्यान में मग्न है तो उनके उपर सर्प को फेंक दिया यह दृश्य देखकर उनके पुत्र रिंगी ने श्राप दिया की राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाम के सर्प के डंसने से होगा और इसी श्राप के चलते राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हो गई। राजा परीक्षित के पुत्र और गांडीवधारी अर्जुन के पौत्र जनमेजय ने संकल्प लिया की ऐसा यज्ञ करूंगा की