नाग पंचमी क्यों मनाते है

"नागपंचमी क्यों मनाई जाती है विस्तार में"

बात तब की है जब द्वापर युग समाप्ति की ओर था और राजा परीक्षित के शासन काल में कलयुग पैर पसार रहा था। तो राजा परीक्षित ने कलयुग को मारने का निश्चय किया लेकिन कलयुग काफी चतुर था और उसे पता था की राजा परीक्षित बहुत ही दयालु स्वभाव के है तो उसने विनती करके स्थान मांगा खुद के निवास के लिए , और राजा ने अपने दानी स्वभाव के कारण कलयुग को जुआ, मदिरा, परस्त्रीगमन, हिंसा और स्वर्ण में रहने की अनुमति दी, लेकिन राजा ने स्वयं स्वर्ण का मुकुट धारण किया था तो कलयुग ने राजा परीक्षित के मस्तक पर स्थान बना लिया और उनके व्यवहार को दुर्व्यहार और उन्हें काफी घमंडी बना दिया। इसी कलयुग के दुष्प्रभाव के कारण राजा परीक्षित ने देखा ऋषि शमिक ध्यान में मग्न है तो उनके उपर सर्प को फेंक दिया यह दृश्य देखकर उनके पुत्र रिंगी ने श्राप दिया की राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाम के सर्प के डंसने से होगा और इसी श्राप के चलते राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हो गई। राजा परीक्षित के पुत्र और गांडीवधारी अर्जुन के पौत्र जनमेजय ने संकल्प लिया की ऐसा यज्ञ करूंगा की सारे नागो का अस्तित्व खत्म हो जाएगा और उन्होंने यज्ञ प्रारंभ कर दिया। अब नाग तक्षक के प्राण संकट में थे और उनके भांजे आस्तिक मुनि आपको बता दे की तक्षक के भाई वासुकी जी ने ही शिव जी के कंठ में स्थान प्राप्त किया और वो शिव जी को काफी प्रिय थे। और आस्तिक मुनि की मां मानसा जी गणेश जी को भाई मानती थी तो जब आस्तिक कोख में थे तभी उनकी माता ने शिव जी से सारे ज्ञान प्राप्त करवा दिए थे। आस्तिक मुनि अपने ज्ञान से किसका भी मन मोहने में निपुण थे तो अपने मामा के प्राण रक्षण हेतु, आस्तिक यज्ञ के दौरान राजा जनमेजय के पास पहुंचे और आपने ज्ञान से उनका हृदय जीत लिया और प्रसन्न होकर राजा जनमेजय ने आस्तिक मुनि से कहा की मांगों क्या मांगना है तब उन्होंने नाग तक्षक और सर्पों की रक्षा करने हेतु यज्ञ रुकवाने का वर मांगा और जो नाग यज्ञ के कारण जल रहे थे आस्तिक मुनि ने उनको दूध की धार डाल कर शीतलता प्रदान की थी। अब वचन बद्ध होकर राजा जनमेजय को यज्ञ रोकना पड़ा और वो तिथि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी और उस दिन से नागपंचमी मनाई जाने लगी। और आस्तिक मुनि ने कहा था नागों का भी इस धरती पर उतना ही अधिकार है जितना एक मनुष्य का और यह खुद भगवान शिव, विष्णु को बहुत प्रिय है तो इस नागपंचमी के दिन जो भी विधिनुसार नागों की पूजा करेगा उसे कभी भी सर्प मृत्यु का भय नहीं होगा और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होगी।
#100rav (स्रोत -  पुराण, महाभारत)

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