बेचारा सुन्दर
एक दूसरे राज्य का व्यक्ति सुन्दर अलग राज्य मे व्यापार करने गया, उस राज्य मे प्रेम त्यौहार चालू था तो आप किसी के लिए भी कुछ भी लिख सकते हो और उसे दरबार मे उल्लेखित किया जाएगा तो अब सुन्दर लिखने मे माहिर था और वहाँ उसे एक मोहिनी ने मुग्ध कर दिया था तो उसने कुछ शब्द लिखे कि '"मोहिनी तुम्हे मेरी नजरे निहारती है तो सकून मिलता है"।
अब उसने मोहिनी को नजरो मे बसा लिया था जब जब मौका मिलता उसे देखता रहता, फिर एक मलतबा मोहिनी अपने सहेलियो के साथ आयी और सुन्दर के समक्ष कहने लगी कि "मेरे दीवाने तो काफी है, पर कोई रूबरू नही आता"।
अब सुन्दर तो पागल हो गया उसे लगा कि शायद मोहिनी भी उनके लिखावट कि कायल हो गयी है, उसने बिना कुछ सोचे एक पत्र लिखा और उसमे लिखा कि प्रेम त्यौहार के दिन वो पंक्तिया हमने ही लिखी थी और जैसा कि सुन्दर मोहिनी को हमेशा निहारता रहता तो उसने कुछ पंक्तिया और लिखी कि माफ करना कि हम आपको ज्यादा ही कुछ देख लेते है।
अब पत्र तो मोहिनी के पास रवाना हो चुका था! यही उसकी मुलाकात एक मित्र से होती है सज्जन से अब उत्सुकता मे वो मोहिनी के विषय मे उनसे पुछ लेते है ,
अब सज्जन उन्हे बताता है कि हाँ वो अप्सरा तो है पर उनके सबंध तो राज्य के मंत्री के साथ है और उन्होने पहले भी एक लड़के को राज्य से निष्कासित करवाया था जो मोहिनी के आसपास भटक रहा था अब सुन्दर कि तो हालत खराब वो तो यहा व्यापार करने आया था अब क्या होगा क्या पता।
रातभर वो सोचते सोचते जैसे तैसे रात काट लेता है अब अगले दिन सुबह उसके चौखट पे दरबान जो सीधा उन्हे न्यायमंच पे ले जाते है अब मंत्री का औदा बड़ा उन्होने राजा से पहले ही बात कर ली थी कि सुन्दर को कड़ी से कड़ी सजा मिले और राजा ने भी भी मंत्री कि बात को सुनते हुए न्यायपीठ से कहा कि उसे सजा मिलनी चाहिए वो भी कड़ी।
पर न्यायपीठ ने जांच पड़ताल कि तो सुन्दर के राज्य के राजा और बाकी सभी आवाम ने कहा कि नही सुन्दर ऐसा नही है पर फिर भी न्यायपीठ पर दबाव था राजा का और उनपर उनके मंत्री का, अब मोहिनी दुविधा मे मंत्री के पास औदा है और पदवी है , सुन्दर तो तुच्छ है अगर उसका साथ दी तो मंत्री रुष्ट हो जएगा तो उन्होने न्यायपीठ को बताया कि सुन्दर उनका पीछा करता था और इनके अंग को निहारता था और वो पत्र भी हथियार बन गए जिसमे सुन्दर कि मंशा थी कि मैं तुम्हे काफी देर तक देख लेता हूँ लेकिन उसे इस कदर पेश किया गया कि हाँ सुन्दर वहशी है।
अब न्यायपीठ सुन्दर को कहाँ छोड़ने वाले थे पहले तो उसे स्वयं के राज्य से निष्काषित किया गया और फिर उसे निगरानी मे रखा गया, अब सुन्दर के मष्तिष्क मे ये चल रहा था कि मैं मेरे अन्य मित्र व्यापारियो को क्या जवाब दूंगा सब पूछेंगे तेरा देशनिकाला क्यो हुआ, वो खुद के नजरो मे गिर चुका था , उसे लग रहा था कि मेरे साथ गलत हो रहा है लेकिन वो कुछ नही कर सकता था तो उसने सोचा अब प्राण त्यागने पड़ेंगे क्योकि बरसो कि बनायी इज्जत डूब गयी।
अब वो ये कदम लेने वाला ही होता है कि उसे उसके राज्य के राजा और आवाम का पैगाम आता है कि मिलने आओ, वो अपने राज्य जाता है तो उसका राजा उसे भलीभांति उसके चरित्र से अवगत कराता है कि तू सुन्दर कौन है? तुझे मालूम है ना, तो लोगो के बारे मे मत सोच! और उसके मित्र भी उसका भरपूर सहयोग करते है तब उसे प्रेरणा मिलती है और सकरात्मक सोचने लगता है और फिर निगरानी मे रहने कि शुरुवात करता है इस उम्मीद से कि भगवान ने सब देखा है शायद सब ठीक हो जाए।
शायद
#100rav
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